अधिकांश समाज में मृत्यु भोज सीमित स्तर पर किया जाता है, लेकिन कुछ समाज में यह काफी बड़े स्तर पर होता है। किसी ने 2 या 3 हजार की रसोई की तो उससे बढ़कर 4 से 5 हजार लोगों की रसाई बनाई जाती है और मिठाई उससे भी ज्यादा। इस प्रकार की होड़ इन समाजजनों में होती है। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के बावजूद समाज में इज्जत बनी रहे इसके लिए उधार लेकर इस काम को किया जाता है और बाद में जमीन बेचकर उधार लिए रुपयों को चुकाया जाता है। पाटीदार, धाकड़, जाट (चौधरी), ब्राह्मण सहित अन्य समाज में बड़े स्तर पर मृत्यु भोज होता है। बदलते समीकरणों के चलते शहर में मृत्यु भोज में काफी कमी आई है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में यही स्थिति देखने को मिलती है। ग्राम धराड़, बांगरोद सहित आस-पास के गांव में पाटीदार, धाकड़ और जाट समाज में देखने में आया है कि परिवार में गमी होने पर बड़े स्तर पर मृत्यु भोज किया, हालांकि उस दौरान तो सभी ने उधार रुपए देकर मदद कर दी, लेकिन उधार चुकाने में जमीनें बेचनी पड़ी।
मृत्यु भोज के लिए कर्ज लेने और जमीन बेचने के मामले सार्वजनिक नहीं हो पाते
1. सालों की परंपरा को खत्म करने में अभी लगेगा समय
सालों से चली आ रही परंपरा को एकदम खत्म नहीं किया जा सकता। हम प्रयास कर रहे हैं कि पाटीदार समाज में मृत्यु भोज बंद हो या काफी छोटे स्तर पर हो। कई बार देखा गया है कि जिसके यहां गमी हुई है उसके यहां मृत्यु भोज के बाद उसे जमीन बेचना पड़ी है। पाटीदार समाज संगठन जिला महामंत्री सुभाष पाटीदार ने बताया मृत्यु भोज के लिए कर्ज लेने व जमीन बेचने वाला प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं आता है। युवा वर्ग मृत्यु भोज को बंद कराने के लिए प्रयास कर रहा है। हालांकि लॉकडाउन में मृत्यु भोज परिवार व चंद रिश्तेदारों में सिमट गया। आगे भी हमारा यही प्रयास रहेगा कि हम इसे इसी तरह करवाएं।
2. बड़े को देख छोटा व्यक्ति भी कर्ज लेकर करता है मृत्य भोज
जाट समाज में बड़े को देख छोटा व्यक्ति भी कर्ज लेकर मृत्यु भोज बड़े स्तर पर करता है। हालांकि कर्ज लेने व जमीन बेचने वाला सार्वजनिक नहीं होता है। निधन के समय समाजजन व अन्य लोगों उसकी मदद कर देते हैं, लेकिन बाद में वह राशि चुकाने में परेशानी आती है। मालव जाट समाज अध्यक्ष दौलतसिंह जाट व सचिव बद्रीलाल चौधरी ने बताया लॉकडाउन में मृत्यु भोज को सीमित करने की नींव डली है तो अब आगे भी यही प्रयास रहेगा कि मृत्यु भोज सीमित दायरे में किया जाए। जाट समाज में अब मानसिकता हो गई है कि मृत्यु भोज को किनारे करना है। युवा पीढ़ी इसे नकार रही है।
3. बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद नहीं मिल पा रहा है
शहर के बजाय ग्रामीण क्षेत्र में मृत्यु भोज बड़े स्तर पर होता है। 3 से 5 हजार लोगों की रसोई बनती है। इसे बंद करने के लिए युवा संघ प्रयास कर रहा है, लेकिन बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद नहीं मिल पा रहा है। अभा धाकड़ युवा संघ प्रदेश महामंत्री आशीष धाकड़ (बांगरोद) ने बताया युवा वर्ग प्रयास कर रहा है कि समाज में बड़े स्तर पर होने वाले मृत्यु भोज को बंद नहीं तो भी उसे कम से कम किया जाए। जिस परिवार में गमी हो जाती है तो उनके परिवार के लोग खुद को समाज में नीचा या कमजोर नहीं दिखाने के लिए वे बड़ा आयोजन करते हैं जो गलत है। सालों से चली आ रही परंपरा को बंद करने के प्रयास में लगे हैं।
वॉट्सएप करें
यदि समाज और संगठन इस कुप्रथा को पूरी तरह बंद करने के लिए सहमत हैं तो पदाधिकारी समाज की सहमति हमें वॉट्सएप पर भेज सकते हैं। हम आपकी सहमति को प्रकाशित करेंगे जिससे अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिल सके। जो पदाधिकारी नहीं हैं वे भी अपनी राय दे सकते हैं। मृत्यु भोज में शामिल नहीं होने का निर्णय लेने वाले भी सिर्फ सहमत लिखकर आप हमें 9827535465 पर वॉट्सएप भेज सकते हैं।
वाॅट्सएप पर सहमति
- मृत्यु भोज बंद होना जरूरी है। परिवार की दुख की घड़ी में आए लोगों को सात्विक भोज कराया जाए। - प्रज्ञा दीक्षित, नागर समाज
- मृत्यु भोज करना शास्त्र में कहीं भी प्रमाण नहीं है। समाज की नई पीढ़ी शत-प्रतिशत इस कुरीति के विरोध में है । - मनोज कुमार बोराना, राठौर क्षत्रिय सभा
- यह कुप्रथा बंद होना चाहिए। हम भी समाज में इस बंद कराने का प्रयास कर रहे हैं। - राकेश पांचाल, विश्वकर्मा पांचाल जिलाध्यक्ष
- मृत्यु भोज बंद होना चाहिए। खर्च होने वाली राशि का उपयोग समाजसेव या जरुरतमदों के लिए करें। - रजनी शर्मा, गौड़ ब्राह्मण समाज
- मृत्यु भोज पूर्ण रूप से बंद होना चाहिए। इसके लिए जो भी आगे आएगा हम उनके साथ है।
शिवपालसिंह सोनगरा, संदला झर
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