30 जून 2004 को डूब में आए हरसूद वासियों के हिस्से में पुनर्वास स्थल की लाल मिट्टी वाली जमीन आई थी, लेकिन उन्होंने यहां बसे दो हजार परिवारों ने 7 हजार से ज्यादा छायादार और फलदार पौधे रोपकर पूरे शहर को हरा-भरा कर दिया। 15 साल पौधों से पेड़ बनने तक इन लोगों ने बच्चों की तरह परवरिश की। आज नतीजा सबके सामने है।
डूब के बाद 2400, 1500 और 540 वर्गफुट के भूखंडों पर विस्थापितों को नक्शे के मुताबिक भवन बनाने की अनुमति मिली। सेक्टर -1 के अशोक बौरासी और सेक्टर-2 के निवासी पूनमचंद प्रजापत ने बताया 2004-05 के शुरुआती दौर में टीनशेड और यहां-वहां रहकर मकान बनाने के दौरान यहां दूर-दूर तक पेड़ का ठिकाना नहीं था।लोगों ने आशियाने बनाने के साथ प्रकृति निर्माण का निर्णय लिया।
खरज, बरगड़, आम व जामुन के पेड़ लगाए
प्रत्येक परिवार ने प्लाट में मकान से बची खुली जमीन पर छायादार और फलदार पौधे लगाए। देखते-देखते ये पहल अप्रत्यक्ष रूप से अभियान और जरूरत बन गई। नतीजा ये हुआ कि आज एनएचडीसी के वनीकरण के अतिरिक्त पूरे नगर में 7000 से ज्यादा पेड़ लहलहा रहे हैं। पुनर्वास के लिए अधिग्रहित जमीन वर्षों से बंजर पड़ी थी। इसलिए उसमें उत्पादक क्षमता बहुत है। यहां छायादार पेड़ों में नीम, खरज, पीपल, बरगड़, फलदार में आम, जामुन नीबू, संतरा, बादाम, अंगूर, आंवला बहुतायत है।
हरित क्रांति के कारण एक नजर में
- 9 सेक्टर में 2000 से ज्यादा परिवार बसे। पेड़ों का अभाव लोगों के लिए परेशानी का सबब बना।
- निजी जरूरत के लिए पेड़ लगाने का दौर शुरू हुआ।
- जमीन की उपलब्धता और पर्याप्त पानी ने इस पर्यावरण वृद्धि के कार्य में काफी मदद की।
- औसत हर परिवार में 2-2 छायादार और फलदार पेड़ लगाए।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3eLhtaz
via IFTTT