लॉक डाउन के बीच उन लोगों की मुसीबतें सबसे ज्यादा बढ़ गई हैं जो दिहाड़ी मजदूरी कर पेट पालते हैं। इन्हें कोई सुविधा नहीं चाहिए, सिर्फ दो टाइम की रोटी के लिए लिए यह दिनभर मजदूरी करते हैं। लॉक डाउन के बीच में ऐसे कई परिवार हैं, जिन्हें भरपेट खाना मिलना तक मुश्किल हो गया है। कराहल से लेकर विजयपुर व वीरपुर की करीब 60 फीसदी आबादी मजदूरी यानी दिहाड़ी पर निर्भर है। जबकि कराहल में तो 90 फीसदी लोग इसी पर आश्रित हैं। ऐसे में लॉक डाउन के चलते यह आदिवासी परिवार अब बेरोजगार हो चुके हैं और घरों में खाने के लाले पड़े चुके हैं। कराहल में समाजसेवी संगठनों के जरिए राशन भेजा जा रहा है, लेकिन हर एक तक यह राशन नहीं पहुंच पा रहा है। लॉक डाउन के बीच तीन दिनी कर्फ्यू ने भी गरीबों की मुसीबत बढ़ा दी है।
कर्फ्यू के बीच घरों में आटा, दाल, तेल या अन्य खाद्य सामग्री खत्म होने पर लोग सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत दर्ज करवा रहे हैं। लेकिन यहां अब तक किसी की समस्या का समाधान नहीं किया गया है। लोगों ने खुद ही इसका उपाय निकाला और राशन की पूर्ति पड़ोसी व अन्य लोगों के जरिए की।
डोब सहराना में भूखी बैठी वृद्धा ने कहा- राशन देकर भूल गया प्रशासन...
निमानिया गांव में एक या दो नहीं बल्कि कई ऐसे परिवार हैं, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है। इसी के चलते उन्हें राशन का वितरण भी नहीं हुआ। अब यह लोग प्रशासन और समाजसेवियों के आने का इंतजार कर रहे हैं। कुछ दिन पहले उन्हें प्रशासन व समाजसेवियों के जरिए थोड़ा राशन दिया था, लेकिन वह खत्म हो चुका है। ऐसे में वह कर्फ्यू के बीच परेशान हैं, क्योंकि समाजसेवी भी उन तक राशन नहीं पहुंचा पा रहे हैं। वृद्धा ने कहा कि यहां तो प्रशासन ने अब तक गांवों में कोई खैर खबर ही नहीं ली है। पहले राशन देकर वह तो उन्हें भूल ही गया, अब वह क्या खाएंगे। बंद के कारण कुछ भी नहीं मिल रहा है।
पप्पू बोला- ऐसे तो मैं और बच्चे भी भूखे मर जाएंगे
कराहल तहसील भोटूपुरा गांव निवासी पप्पू आदिवासी ने बताया कि उसकी पत्नी तो पहले ही मर चुकी है, अब उसके तीन बच्चे हैं, जिनकी पूरी जिम्मेदारी अब उसी पर है। वह दिहाड़ी कर लाता है फिर भोजन बनाकर बच्चों को खिलाता है। लेकिन लॉक डाउन के बीच उसकी झोपड़ी में अब खाने को कुछ नहीं बचा है। यहां मदद भी किससे मांगें, क्योंकि सभी उसी की तरह जीवन यापन कर रहे हैं। पप्पू ने बताया कि ऐसे तो वह और उसका परिवार भूखा मर जाएगा, क्योंकि उनके पास कोई विकल्प ही नहीं है। यहां चौरासी महापंचायत के टुंडा राम आदिवासी ने उसे कुछ आटा दिया, ऐसे में रुखी रोटी खाकर उसने अपना व बच्चों का पेट भरा।
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