तेज धूप, बरसात और हाड़ कँपा देने वाले सर्द मौसम में जिस्म को मजदूरी की आग में झोंककर कुंदन बनने वाले मेहनतकश मजदूरों की जिंदगी में पहली बार ऐसा वक्त आया है, जब जीने के लिए उन्होंने पैसा कमाने का लोभ छोड़ दिया है। श्रम और पसीने की गाढ़ी कमाई खाने वाले धरतीपुत्र अमाया, लंगड़ और निरुआ, जो बीएसएनएल के एक ठेकेदार के यहाँ काम करते थे और एक महीने से बेरोजगार हैं, का कहना है कि काेरोना की इतनी दहशत भर गई है कि घर से बाहर निकलने लगोे तो परिवार वाले कहने लगते हैं कि बाहर न जाओ.. जो रूखा-सूखा घर में है, वही खाकर दिन गुजार लेंगे, लेकिन परिवार के मुखिया को कुछ हो गया तो पत्तों की तरह सब बिखर जाएगा। अमाया ने बताया िक वो मंडला का रहने वाला है, जो यहाँ टेलीफोन लाइन के लिए गड्ढे खोदने का काम करता रहा है, मनमोहन नगर में कच्चा घर बनाया है, परिवार उसमें रहता है, लॉकडाउन के बाद से काम बंद है, जो पैसा बचाया था, वो राशन में खर्च होता जा रहा है, ठेकेदार फोन उठाता नहीं है। अगर लॉकडाउन कुछ दिन और चला तो भूखों मरने की नाैबत आ जाएगी। बस्ती में कहीं से कोई मदद के लिए नहीं आता। सरकारी मदद भी नहीं मिल रही है। यही हाल उसके साथियों का है जो एक किराए के मकान में रह रहे हैं, मकान मालिक किराया माँग रहा है, पैसे खत्म हो रहे हैं, खाने-पीने के भी लाले पड़ने लगे हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना की बीमारी ने बहुत से सबक दिए हैं, अब एक बार बीमारी खत्म हो जाए, हम सब अपने घरों को वापस लौट जाएँगे।
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