ग्राम टाकलखेड़ा में जापान की मियावाकी तकनीक से 20 हजार वर्गमीटर में 2500 पौधे लगाए जा रहे हैं। इस तकनीक के सहारे दो मीटर चौड़ी और 30 मीटर लंबी पट्टी में एक और आधे फीट के अंतराल से पौधे रोपे जाएंगे, जो दोगुनी रफ्तार से बढ़ेंगे। इससे जंगल तो बढ़ेगा, साथ ही पर्यावरण को लाभ मिलेगा। यह पौधे अॉक्सीजन बैंक की तरह काम करते हैं और बारिश को आकर्षित करने में भी सहायक होते हैं।
मध्यप्रदेश डे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन विकासखंड पंधाना के अंतर्गत संचालित ग्राम टाकलखेड़ा में उजाला आजीविका स्वयं सहायता समूह द्वारा एवं ऐफिकोर संस्था के सहयोग से 20 हजार वर्गमीटर में 20 प्रजातियों के पौधे लगाए जा रहे हैं। संस्था द्वारा 4 हजार पौधे लगाने का लक्ष्य है। इसके अलावा पौधे की सुरक्षा के लिए चारों और तार फेंसिंग भी किया गया है। एफिको संस्था के प्रोजेक्ट मैनेजर सेमसन युहान ने बताया पौधे लगाने का मुख्य उद्देश्य गांव में पर्यावरण संरक्षण को बढावा, वृक्षों को बढ़ाना है वातावरण को शुद्ध बनाना व साथ ही समूह की आय में बढ़ोत्तरी करना है। इस दौरान ग्राम नोडल किलरसिह जाधव, सुनिल खोटे, शिवलाल जाधव, प्रकाश जमरा मौजूद थे।
यह है मियावाकी तकनीक
2014 में बॉटनिस्ट अकीरा मियावाकी ने हिरोशिमा के समुद्री तट के किनारे पेड़ों की एक दीवार खड़ी की, जिससे न सिर्फ शहर को सुनामी से होने वाले नुकसान से बचाया जा सका, बल्कि दुनिया के सामने कम्युनिटी व घने पौधारोपण का एक नमूना भी पेश किया। इस तकनीक में महज आधे से एक फीट की दूरी पर पौधे रोपे जाते हैं। इसमें जीव अमृत और गोबर खाद का इस्तेमाल किया जाता है।
तकनीक के इस्तेमाल का तरीका... पीपल और बरगद जैसे पौधों के साथ कम ऊंचाई तक जाने वाले पौधे लगाए जाएं। पौधारोपण के समय जीवामृत और जैविक खाद का इस्तेमाल करें। पौधारोपण के बाद मिट्टी को पुरानी पत्तियों से ढंक दें।
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