इंदौर | एस्मा लागू होने के बाद शहर के निजी अस्पताल मरीजों को सीधे लौटाने से तो बच रहे हैं, लेकिन ज्यादातर निजी अस्पतालों से विशेषज्ञ डॉक्टर नदारद हैं। भास्कर ने एक एम्बुलेंस में दो वॉलेंटियर को मरीज बनाया और ग्रीन जोन वाले 15 से ज्यादा निजी अस्पतालों की पड़ताल की। ज्यादातर निजी अस्पतालों में बोल दिया- तुम्हें ड्राय कफ है! सॉरी, दूसरे अस्पताल जाओ। निजी अस्पतालों में बड़े-बड़े नाम वाले डॉक्टरों की सूची तो चस्पा है, लेकिन डॉक्टर गायब हैं। ज्यादातर गैर एमबीबीएस या जूनियर ड्यूटी डॉक्टर ही मौके पर मौजूद हैं। सीएचएल जैसे बड़े अस्पतालों में तो गार्ड ने ही यह कहकर जाने से मना कर दिया कि यदि डॉक्टर से पहले से बात नहीं हुई है तो भर्ती नहीं करेंगे। हालांकि बाद में ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर एम्बुलेंस में आकर मरीज की जांच को तैयार हो गए।
पड़ताल के लिए हमने सिर्फ ग्रीन जोन के अस्पतालों का चयन किया। शहर के एक समाजसेवी ने एम्बुलेंस उपलब्ध कराई। देवेंद्र मालवीय जो अभी कुछ दिन पहले अपनी कैंसर पीड़िता बहन को एक के बाद एक अस्पताल में लेकर घूमे थे और आखिरकार वापस खंडवा भेज दिया, वे भास्कर के वॉलेंटियर मरीज बने और मनीष गुप्ता उनके साथी। हर जगह मरीज को घबराहट, डायबिटीज हिस्ट्री, सीने में दर्द और सांस लेने में तकलीफ बताई गई।
सभी जगह पूछा- सर्दी-खांसी तो नहीं
शुरुआत ग्रेटर कैलाश, पलासिया से की। गार्ड ने एम्बुलेंस बाहर ही खड़ी करवाई और ड्यूटी डॉक्टर ने समस्या पूछी। हार्ट और घबराहट की समस्या बताई तो कहा कि सब यही कहते हैं, बुखार-खांसी तो नहीं? मयंक के स्टाफ ने डॉक्टर न होने का हवाला देकर मना कर दिया। जब हम जाने लगे तो जरूर एक आदमी आया और उसने कहा कि बताइए मैं क्या मदद कर सकता हूं। ज्यादातर अस्पतालों ने विशेषज्ञ डॉक्टरों की ओपीडी बंद कर रखी है। बस एक कॉमन ओपीडी बना रखी है। जूनी इंदौर क्षेत्र के आनंद अस्पताल में मरीज की जांच को तैयार हो गए लेकिन सलाह दी कि सीने में दर्द, घबराहट के इलाज के लिए फिजीशियन जरूरी है।
अस्पताल में ही सोशल डिस्टेंसिंग नहीं, मरीज से जरूर दूरी
कोरोना वायरस संक्रमण के संदेह में भर्ती किए जा रहे मरीजों के लिए जिला प्रशासन ने यलो जोन के आठ अस्पतालों को चिन्हित किया है। इनमें सवा दो सौ बेड उपलब्ध हैं। इन्हीं में एमवायएच का चेस्ट वार्ड भी है। यहां अव्यवस्थाओं से मरीजों में काफी डर है। यहां मरीज के साथ एक परिजन को रहने की अनुमति है लेकिन परिजन बेरोकटोक वार्ड में जाते हैं। यही लोग बाहर भी ऐसे ही निकल जाते हैं। संक्रमित वार्ड से लौटने के बाद व्यक्ति बाहर आसानी से जा रहा है, जिससे संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है। मरीजों के परिजन का कहना है कि वार्ड में पलंग के बीच का फासला भी कम है।
जहां कोरोना संदिग्ध भर्ती हैं, वहीं बाहर पीपीई किट का लगा रहे ढेर
कोरोना संक्रमण के संदेह में भर्ती किए जाने वाले मरीजों को एमवाय अस्पताल परिसर के पीजी ब्लॉक में भर्ती किया जा रहा है। यहां डॉक्टर्स के साथ परिजन, पुलिस व प्रशासन के लोगों की भी लगातार आवाजाही है। हैरानी है कि पर्सनल प्रोटेक्शन किट का इस्तेमाल करने के बाद जब व्यक्ति बिल्डिंग से बाहर निकलता है तो उसे परिसर में ही फेंक रहा है। यहां पीपीई किट का ढेर लग चुका था। गुरुवार रात इसकी जानकारी मेडिकल कॉलेज डीन डॉ. ज्योति बिंदल तक पहुंची तो उन्होंने तत्काल इन उपयोग की गई किट को हटवाया।
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