
बहुराष्ट्रीय कंपनियां प्लेसमेंट के लिए भोपाल जैसे छोटे शहरों को मेट्रोज सिटीज पर तरजीह दे रहे हैं। क्योंकि कंपनियां मानती हैं कि इन शहरों के युवाओं का प्लेसमेंट देने से कंपनी का एट्रिशन रेट घटेगा। क्योंकि मेट्रोज के युवा जल्दी जल्दी नौकरियां बदलते हैं। यह कहना है सागर ग्रुप के प्रबंध निदेशक (एमडी) सिद्धार्थ अग्रवाल का। उन्होंने कहा कि लॉकोडाउन में भी ग्रुप के स्कूल व कॉलेज लगभग सामान्य दिनों की तरह काम कर रहे हैं। सभी 6 स्कूलों के 12 हजार बच्चों की स्कूल शुरू होती है। पेरेंट्स की क्लास से शुरुआत होती है। इसमें बच्चों की इम्यूनिटी को कैसे मजबूत करें बताते हैं। विशेष ट्रेनिंग सेशन भी लगाते हैं।
कोरोना आपकी संस्थाओं के लिए कितनी बड़ी चुनौती है, आप कैसे सामना कर रहे हैं?
हम स्कूल-कॉलेज दोनों का संचालन करते हैं। अब हम डिजिटल क्लॉस रूम और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के जरिए यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि छात्रों की पढ़ाई फिजिकल क्लास रूम की तरह चलती रहे। बच्चों के माता-पिता के लिए भी डिजिटल कंटेंट प्रोवाइड करा रहे हैं। उनकी काउंसलिंग कर रहे हैं। 4 कॉलेज में पढ़ रहे 8 हजार छात्रों के डिजिटल टेस्ट ले रहे हैं। यह हमारे लिए एक बड़ा अवसर ही है, क्योंकि पहले बच्चे हमारी क्लासेस में 8 घंटे के लिए होते थे, लेकिन अब वे 24 घंटे हमारे साथ ऑनलाइन हो सकते हैं।
भोपाल आने वाले दिनों में किस तरह देश में एजुकेशन हब के रूप में सामने आ सकता है?
कोई भी शहर तभी अच्छा एजुकेशन हब माना जाएगा, जब वहां से निकले छात्र ज्यादा कामयाबी हासिल करें। वे बड़ी-बड़ी कंपनियों में प्लेस हों। यह तभी संभव होगा जब छात्रों को उस तरह से तैयार किया जाए। इस दिशा में काम हो रहा है। अाजकल बहुराष्ट्रीय कंपनियां मेट्रो शहरों के बजाय भोपाल जैसे टियर-2 शहरों की ओर आ रहीं हैं। हम प्राइमरी व कॉलेज एजुकेशन दोनों में बेहतर काम कर रहे हैं। स्कूल में हम अगर किसी छात्र को एक अच्छा इंसान बना देते हैं तो वह हमेशा एक अच्छा इंसान बना रहेगा।
आप लॉकडाउन में अपने स्कूल-कॉलेज में किस तरह के इनोवेशन पर काम कर रहे हैं?
हमारी सागर पब्लिक स्कूल प्रदेश कीपहली दो या तीन स्कूलों में शामिल रही है, जिनमें साइंस इनोवशन के लिए अटल टिंकरिंग लैब की स्थापना की है। इसमें बच्चे साइंस इनोवेशन पर काम करते हैं। हम अपनी कॉलेज में उन्हीं सॉफ्टवेयर का उपयोग करते हैं, जो छात्रों ने बनाए हैं। हमारा ईआरपी भी छात्रों ने ही बनाया है। डिजिटल कंटेंट डेवलपमेंट का सारा काम हमारी स्कूल के बच्चे करते हैं। हम ऐसे इनोवेशन पर लगातार काम करते आ रहे हैं। इससे हमारी जरूरतें भी पूरी हो जाती हैं और बच्चों को रिक्रूटमेंट भी मिल जाता है।
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