(सतेंद्र विद्यार्थी) लॉकडाउन को एक महीना पूरा हो चुका है। इस दौरान वाहनों व फैक्टरियों का संचालन पूरी तरह से बंद रहा। इसका असर शहर की हवा पर भी पड़ा। शहर के सबसे प्रदूषित बैरियर इलाके में जहां रोज 8 से 10 हजार वाहन व 20 से अधिक फैक्टरियों का संचालन होता था, वहां भी हवा में कार्बनडाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें 35 से 40 प्रतिशत तक घट गई हैं। वहीं शहर के जीवाजी गंज इलाका तो इस समय सेहत के लिहाज से सबसे सुरक्षित है। यहां हवा में हानिकारक गैसों का स्तर न के बराबर मिला है। शनिवार को दैनिक भास्कर ने प्राणी वैज्ञानिक डा. विनायक सिंह तोमर के साथ शहर के चार इलाकों में हवा की सैंपलिंग कराई तो असर चौंकाने वाले निकले। पढ़िए दैनिक भास्कर में शहर के चार इलाकों में हवा में प्रदूषण की स्थिति...
लॉकडाउन का दो महीने तक मिलेगा लाभ
एक महीने के लॉकडाउन के दौरान वाहन फैक्टरियों व अन्य माध्यमों से पॉल्यूशन कम होने की वजह से हमारे शहर की हवा पूरी तरह शुद्ध हो गई है। प्राणी वैज्ञानिक डॉ विनायक सिंह तोमर ने बताया कि अगर आज की स्थिति में भी अगर लॉकडाउन खत्म हो जाए तो भी लोगों को दो महीने तक शुद्ध ऑक्सीजन इसी प्रकार मिलती रहेगी।
सप्ताह में एक दिन वाहन बंद हों: तोमर
गर्ल्स कॉलेज के प्रोफेसर एवं प्राणी वैज्ञानिक डॉ. विनायक का कहना है कि यदि हम सप्ताह में एक दिन वाहनों का लॉकडाउन सुनिश्चित करें तो न केवल शहर के वातारण को शुद्ध कर सकते हैं, बल्कि पूरे देश की आबोहवा बदल जाएगी। इससे न तो लोगों की दैनिक क्रियाकलापों पर कोई विशेष प्रभाव पड़ेगा और न व्यापार में कोई हानि होगी।
गैसों का शरीर पर असर
- कार्बनमोनो ऑक्साइड: इस गैस की सांद्रता बढ़ने पर खून से ऑक्सीजन की तुलना में अधिक तीव्रता से क्रिया करती है और शरीर में कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन का निर्माण करती है। इससे प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करने वाली कोशिकाएं प्रभावित होती हैं।
- कार्बनडाई ऑक्साइड: इसकी सांद्रता अधिक होने से फेंफड़ों की कूपिकाएं (क्रियान्वयन इकाई) संकुचित होने लगती हैं। इससे फेंफड़े सिकुड़ने लगते हैं।
- सल्फरडाई ऑक्साइड: वायुमंडल में इसकी सांद्रता बढ़ने पर नेत्र संबंधी रोग तथा एलर्जी और त्वचा रोगों में वृद्धि होती है।
- नाइट्रस ऑक्साइड: इस गैस की अधिकता से संवेदी अंगों (नाक, कान, आंख, जीभ व त्वचा) की संवेदनशीलता और तंत्रकीय समन्वय प्रभावित होता है।
- पर्टिकुलेट मैटर: इन कणों के शरीर में प्रवेश करने पर अंग तंत्रों की क्रियाशीलता कम हो जाती है। शरीर की पाचन क्रिया अनियमित हो जाती है। उत्सर्जन की गति धीमी होने लगती है।
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