
खरगोन के जैविक खेती करने वाले किसान अविनाश दांगी ने 1 क्विंटल काले गेहूं बोकर 36 क्विंटल की उपज ली है। बिस्टान के पास चंदावड़ में खेती है। किसान के मुताबिक 2 साल पहले पंजाब के मोहाली से 10 किलो बीज लेकर आए थे। उन्हें गेहूं की काली किस्म के बारे में कृषि सम्मेलन में जानकारी मिली थी। शुरूआत में उन्हें मोटापा, कैंसर, डायबिटीज और तनाव जैसी गंभीर बीमारियों की रोकथाम में यह काला गेहूं काम आने की जानकारी मिली। यह जानकर बीज लाया था। 2 साल बाद 36 क्विंटल गेहूं की उपज ली। उनके उपजाए काले गेहूं को फोन पर ही बुक करा लिया है। अविनाश बताते है कि खरगोन के अलावा गुजरात, गाजियाबाद, पुणे व नागपुर से मांग आई है।
12 साल से कर रहे खेती
किसान 12 सालों से जैविक खेती कर रहे हैं। साथ ही देशी प्रजाति के बीजों का संधारण भी कर रहे हैं। वे बताते है कि हमारे देशी प्रजाति की किस्में खत्म हो रही है। अरहर, ज्वार, बाजरा, चना, मक्का, मूंग और गेहूं की देशी प्रजाति का संधारण किया है। क्षेत्र के किसानों से बीज लेकर मक्का बीज तैयार किया है।
इसलिए अलग है यह गेहूं
सामान्य गेहूं में एनथोसाईनिंग की मात्रा 5 से 15 प्रति मिलियन होती है। जबकि काले गेहूं में यह 40 से 140 प्रति मिलियन तक होती है। यह शरीर से फ्री रेडिकल्स बाहर निकालने में सहायता करता है। 7 वर्ष तक शोध करने के बाद फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट मोहाली की ओर से पेटेंट कराए काले गेहूं (नाबि एमजी) की खेती की शुरुआत की।
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