जिले में कोरोना पाजिटिव मरीज मिलने के बाद उसके निवास व कार्यक्षेत्र में बनने वाले कंटेनमेंट जोन की संख्या 430 से ऊपर होने को है। अभी तक ये जोन केवल नागरिकों के निवास या उनके कारोबार की घेराबंदी हो रही थी। लेकिन 10 दिन पहले कलेक्टोरेट के 5 कर्मचारियों के पॉजिटिव निकलने के बाद इस महामारी ने सरकारी कामकाज पर भी तालाबंदी की नौबत ला दी है। उदाहरण के लिए कलेक्टोरेट की रीडर और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति शाखा का काम पूरी तरह से बंद है। इनमें से खाद्य विभाग में तो इस समय आधार सीडिंग समेत केंद्र की योजना के तहत पात्रता पर्चीधारियों को मुफ्त खाद्यान्न के आवंटन का काम चल रहा था। दोनों शाखाओं के पॉजिटिव कर्मचारी अभी भी कोविड-हॉस्पिटल में भर्ती हैं, इसलिए इस घेराबंदी का जल्द खत्म होना फिलहाल संभव नहीं दिख रहा है।
नगर निगम सीमा में सबसे ज्यादा कंटेनमेंट, गांव-कस्बे में कम : पॉजिटिव के साथ-साथ उसके निवास या कार्यस्थल पर बनने वाले कंटेनमेंट आम जनजीवन पर काफी असर डालते हैं। बहरहाल जिले में नगर निगम सीमा में सबसे ज्यादा कंटेनमेंट जोन बनाए गए हैं। मई में पहला केस मिलने से लेकर अब तक यहां करीब 265 कंटेनमेंट जोन बन चुके हैं। इससे उलट जिले के गांव व कस्बे जैसे बंडा, रहली, गढ़ाकोटा, बीना, देवरी आदि में बहुत कम केस मिले हैं। इसके चलते यहां जोन कं की संख्या बहुत कम है। अब तक यहां 139 जोन बने। इनमें से 34 ही सक्रिय हैं, बाकी हटा दिए गए हैं। इन जोन में मकरोनिया नपा के केस भी शामिल हैं। कैंट में एक समय 28 तक जोन बन चुके हैं, लेकिन अब ये घटकर 3 रह गए हैं। बुधवार तक जिले में 430 से ज्यादा जोन बन चुके थे, जिनमें से अब 123 सक्रिय स्थिति में हैं।
कंटेनमेंट: कम से कम 14 दिन की घेराबंदी जरूरी है : कंटेनमेंट को लेकर नगर निगम के कमिश्नर आरपी अहिरवार का कहना है कि यह व्यवस्था संशोधित होती रही है। फिलहाल हम पॉजिटिव मरीज के पास-पड़ोस में रहने वाले चार-पांच परिवार को ही इस दायरे में लेते हैं। लेकिन जहां पॉजिटिव का मूवमेंट ज्यादा प्रतीत होता है तो दायरा बढ़ा दिया जाता है। नियमानुसार मरीज के मिलने के 14 दिन तक कंटेनमेंट जोन रहता है। इस दाैरान एक भी मरीज नहीं मिलता है तो कंटेनमेंट हटा दिया जाता है। लेकिन एक भी मरीज मिलता है तो यह अवधि फिर 14 दिन बढ़ा दी जाती है। लोग अगर कंटेनमेंट का पूर्णत: पालन करें तो महामारी पर नियंत्रण पाने में काफी मदद मिलती है।
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