(सुनील सिंह बघेल)कोरोनावायरस का सैंपल लेने वाला व्यक्ति, संदिग्ध या संक्रमित की छींक तो ठीक उसकी सांसों की जद से भी बस चंद इंच की दूरी पर होता है। उन्हें हर वक्त संक्रमित होने का खतरा होता है।दैनिक भास्कर ने इंदौर मेंरोजाना 60 से 70 सैंपल लेने वाली इंडेक्स मेडिकल कॉलेज की टीम से समझी सैंपलिग से जुड़े खतरे, उनकी मनोदशा और संक्रमण की दहशत पर काबू पाने की कहानी।
क्वारैंटाइन हुईं, ठीक होकर फिर संभाला मोर्चा
सैंपलिंग टीम का नेतृत्व करने वाली इंडेक्स मेडिकल कॉलेज की 68 वर्षीय प्रो. अवनिंदर नैयर जब दिल्ली से लौटीं तो तेज बुखार था। पहले वे खुद क्वारैंटाइन हुईं। रिपोर्ट निगेटिव आई फिर डट गईं इलाज के मोर्चे पर। वे कहती हैं- शुरुआती दौर में सबके लिए कोरोना और मौत एक-दूसरे के पर्याय थे। मैंने एक ही बात कही कि भारत-पाकिस्तान का युद्ध हो और फौजियों को उनके घर वाले घर बैठा ले तो क्या होगा। यह भी एक युद्ध है। खुद सैंपल लेकर दिखाए। अब हम इंदौर में कहीं भी सेवाएं देने को तैयार हैं।
जरा सी चूक और संक्रमण का खतरा
सैंपल लेने से लेकर उसे एमजीएम कॉलेज की वायरोलॉजी लैब तक रोज पहुंचाने का जिम्मा उठा रखा है ओरल पैथोलॉजी के रीडर डॉ. धीरज शर्मा ने। वे कहते हैं- गले से स्वाब या नाक से नमूने ले रहे होते हैं, वह चंद सेकंड बहुत तनाव भरे होते हैं। संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा भी तभी होता है। इतनी गर्मी में पीपीई किट बहुत घुटनभरे हो जाते हैं। अब तो आदत हो गई है। जब डर का स्थान जज्बा और जुनून और जिम्मेदारी ले लेती है तो यह सब बातें बेमानी हो जाती हैं।
फौजी पति से मिला संबल
ओरल रेडियोलॉजी रीडर डॉ. दीप्ति सिंह हाड़ा बताती हैं- डर तो नहीं लगा, क्योंकि स्वाइन फ्लू का भी एक अनुभव था। लेकिन सच कहूं तो शुरुआती दौर में जब सैंपल लेती और संदिग्ध छींक भी देता था तो चंद सेकंड के लिए 2 और 4 साल के बच्चों की तस्वीर आंखों के सामने घूम जाती थी। लेकिन पति सेना में रहे हैं, खुद भी डॉक्टर हैं इसलिए चुनौती आसान हो गई। हर सैंपल के पहले और बाद में खुद को सैनिटाइज करते हैं।हर बार नए दास्ताने और किट की पूरी जांच करने के बाद सैंपल लेते हैं।
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