हर माता पिता को आज के प्रतिस्पर्धा वाले दौर में अपने बच्चों को घर का पौधा बनाने के बजाए जंगल का पेड़ बनाना चाहिए। क्योंकि घर के पौधे को जब पानी नहीं मिलता है तो वो मुरझा जाता है लेकिन जंगल का पेड़ कई महीनों तक पानी नहीं मिलने पर भी जीवित रहकर खड़ा रहता है। यह बात राष्ट्रीय संत स्व. मुनि तरुणसागर जी के शिष्य मुनि प्रतीक सागरजी ने मंगलवार को मक्सी जैन तीर्थ दिगंबर जैन मंदिर में कही।
मुनि प्रतीक सागरजी पुष्पगिरि तीर्थ से 6 जून से विहार करते हुए 23 साल बाद 9 जून को जैन तीर्थ मक्सी पहुंचे। भास्कर से विशेष चर्चा में उन्होंने बताया कि लॉकडाउन में डेढ़ माह तक नागदा में ही रहे, जिसके बाद अब विहार करते हुए मक्सी पहुंचे हैं। यहां से चातुर्मास शुरू होने तक विहार करते रहेंगे। 4 जुलाई से चातुर्मास शुरू होने पर रुक जाएंगे। मंगलवार को विश्राम के बाद मुनिश्री अपने अनुयायियों के साथ विहार के लिए मक्सी जैन तीर्थ से शाम 5 बजे प्रस्थान कर गए। आज मुनिश्री शाजापुर में विश्राम के लिए रुकेंगे।
मुनि प्रतीक सागरजी ने कहा कि कोरोना संक्रमण धरती पर फैल रहे पापों की वजह से आहत हुई प्रकृति और परमात्मा की अनदेखी का नतीजा है। आज की लगभग हर पीढ़ी ने पाश्चात्य संस्कृति को अपना लिया है। भक्ति के लिए किसी के पास समय नहीं है। पशुओं की हत्या की जा रही है। इससे परम पिता परमेश्वर भी आहत हो चुके हैं। लॉकडाउन ने हर भारतीय को अपने परिवार के साथ रहना सिखाया। अब लोगों को पाश्चात्य संस्कृति छोड़कर भारत की लाखों वर्ष पुरानी संस्कृति को अपना लेना चाहिए। पाश्चात्य संस्कृति अपनाने वाले देश विश्व को व्यापार समझते हैं और भारत देश की संस्कृति विश्व को अपना परिवार समझती है। मुनिश्री के आगमन पर पवन जैन, बबीता जैन इंदौर, राजेश जैन सोनकच्छ, सुमित जैन, योगेंद्र जैन, अर्पित जैन मक्सी, आशीष जैन बाराबंकी यूपी, पिंकी जैन मक्सी, कैलाश जैन आदि उपस्थित थे।
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