जिले के किसान नए प्रयोग कर नई फसल लेने के लिए आगे रहते हैं। अंगूर, स्ट्रॉबेरी पपीता, एप्पल, बैर, अमरुद के बाद अब ड्रैगन फ्रूट की खेती भी की जाने लगी है। यह फसल चीन में ज्यादा होती है। जिले में है पहला गांव है आम्बा जहां ड्रैगन की खेती की जा रही है।
आम्बा के किसान नंदलाल पाटीदार ने अपनी बंजर भूमि में ड्रैगन फ्रूट व अंजीर की खेती शुरू की। जैविक खाद का प्रयोग कर 18 महीनों में पहली फसल ली है। ड्रैगन फ्रूट एक विदेशी फल है। यह प्रति नग 100 से 150 रुपए में बिकता है। एक फल का वजन 500 ग्राम का है। किसान पाटीदार ने 18 माह पहले गुजरात के कच्छ और भुज से ड्रैगन फ्रूट के पौधे लाकर दो बीघा जमीन में बोए थे। 40 रुपए प्रति एक पौधे के मान से 200 पौधे लेकर दो बीघा जमीन में लगाए।
सिंचाई ड्रिप के माध्यम से की जाती है, 25 साल तक फल देता है ड्रैगन फ्रूट का पौधा
नंदलाल पाटीदार ने बताया ड्रैगन का पौधा 25 साल तक फसल देता है। इसकी सिंचाई ड्रिप द्वारा की जाती है। इन पौधों को सीमेंट के खंभे पर रिंग के सहारे लगाया जाता है। 7 फीट के सीमेंट के खंबे को 2 फीट जमीन में गाड़ा जाता है। तीसरे साल बाद से ज्यादा संख्या में फल प्राप्त होता है। जब पौधा पर्याप्त बड़ा और मजबूत हो जाता है इसकी खेती से शुरुआती साल में ही लागत खर्च निकल जाता है। प्रदेश में पहले किसान गणेशगंज के दशरथ पाटीदार हैं दूसरे आम्बा के पाटीदार हैं। यह फल दिल्ली जाता है, लेकिन कोरोना के चलते अभी फल रतलाम व आसपास के शहरों में भेजा जा रहा है। अभी फल 210 रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से बिक रहे हैं। वास्तविक मूल्य 350 प्रतिकिलो के हिसाब से बिकते हैं। यह फसल किसानों के लिए मुनाफे की खेती है। पानी की लागत भी कम और पैदावार भी अधिक है।
कैंसर का खतरा कम करता है
ड्रैगन फ्रूट में ऐंटी-ऑक्सीडेंट्स, फाइबर्स और विटामिन सी पाया जाता है। यह कई गंभीर बीमारियों से रिकवरी में मदद करता है। स्टडीज की मानें तो विटमिन सी की पर्याप्त मात्रा लेने से कैंसर का खतरा कम रहता है।
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