संजय गुप्ता/नीता सिसौदिया ,दो सौ से तीन सौ मौत सामने आने में केवल 30 दिन लगे हैं और ये मौतें 1966 मरीज सामने आने के दौरान दर्ज हुई हैं, जिससे मौत दर 5.08% आई है। दरअसल जुलाई में नई मौतें सबसे कम हुई हैं, पर अप्रैल की 53 मौतें उस समय प्रशासन द्वारा नहीं बताकर जुलाई में बताई गईं, इसके चलते यह सबसे तेज मौत दर्ज हुई हैं। वास्तव में इन सौ मौतों में नई मौतें 47 ही हैं। इस लिहाज से मौत दर केवल 2.39% रही है।
लेकिन सच्चाई- 200 से 300 मौत होने में 53 मौत पुरानी और नई केवल 47 हैं। यानी 1966 मरीज इस दौरान सामने आए और 47 की मौत हुई। मंगलवार को 114 नए केस के साथ कुल मरीज अब 6339 हो गए हैं।
उम्मीद बढ़ी और थमें मौतें, समझ आया सटीक इलाज
भले ही संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़े लेकिन विशेषज्ञ उम्मीद जता रहे हैं कि अब मृत्युदर में कमी आएगी। शुरू के दो महीने में मौतों की संख्या ज्यादा इसलिए रही क्योंकि इलाज को लेकर स्पष्टता नहीं थी। वायरस का प्रभाव भी अलग-अलग तरह से सामने आ रहा था पर 12 से 13 दवाओं के कॉम्बिनेशन और तकनीकों के इस्तेमाल के बाद समझ आने लगा है कि किस मरीज काे कौन सी दवा दी जाना चाहिए।
क्लाॅटिंग, हार्ट फेल्योर के संकेत समझे, ब्रीदिंग पर भरोसा किया
- एंटी इनफ्लेमेटरी मार्कर : वायरस के अटैक के बाद कुछ मरीजों में सूजन की शिकायत देखी गई। इन्हें मिथाइल प्रेडनिसोलोन दी जा रही है।
- इंट्रावस्क्यूलर थ्रंबोसिस : ऐसे मरीज भी सामने आए जो ठीक दिखे पर शरीर में क्लॉटिंग मिली। उन्हें लो-मॉलेक्यूलर वेट हेपरिन से लाभ हुआ।
- मल्टी आर्गन हाईपोक्सिया : कई बार बाहर से ऑक्सीजन स्तर 95% दिखता है पर अंदर कम हो जाता है। लक्षण पर ऑक्सीजन देते हैं।
- ब्रीदिंग मास्क व नेजल कैनुला : ब्रीदिंग मास्क व हाई फ्लो नेजल कैनुला से ऑक्सीजन देकर मरीज को वेंटीलेटर पर जाने से बचा रहे हैं।
- साइटोकाइन स्टॉर्म : ये बीमारी के 7 से 9वें दिन सामने आते हैं, जो हार्ट फेल्यूअर की आशंका बढ़ा देते हैं। अब इनके लिए इंजेक्शन दे रहे हैं।
- बदला नजरिया: पहले लोग डरकर घरों में ही इलाज करवा रहे थे। अब नजरिया बदला है। लक्षण पर जांच करवा रहे और अस्पताल पहुंच रहे हैं।
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