तहसील मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम भिड़ावद क्रमांक दो में श्री पशुपतिनाथ धाम गत आठ वर्षों में मालवा के प्रमुख तीर्थ स्थल में विकसित हो गया है। आज से आठ साल पहले एक टीले की खुदाई में निकली पुरातत्वीय महत्व की भगवान पशुपतिनाथ की इस मूर्ति के दर्शन के लिए सालभर दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण श्रद्धालुओं को सोशल डिस्टेंस के साथ कम संख्या में दर्शन के लिए जा रहे हैं। मंदिर में भगवान के जलाभिषेक के लिए पाइप की व्यवस्था की गई है। इससे श्रद्धालु भगवान की मूर्ति को छुए नहीं। ग्राम के कपिल दुबे ने बताया कि कोरोना के कारण 27 जुलाई को भगवान के अवतरण दिवस पर ग्राम में लगने वाला बड़ा मेला भी नहीं लगा और भंडारे का भी आयोजन नहीं हो सका। हर साल यहां जलाभिषेक के लिए आने वाले कावड़िए भी इस बार नहीं आ सके और न ही कलश यात्रा निकल सकी।
2012 में चमत्कारिक मूर्ति हुई थी अवतरित- भगवान पशुपतिनाथ की बेशकीमती और चमत्कारिक मूर्ति का अवतरण 27 जुलाई 2012 को उस वक्त हुआ था, जब एक ग्वाले को स्वप्न आने के बाद टीले की करीब 12 फीट खुदाई की गई थी। अवतरण के आठ वर्षों के बाद भगवान की आकर्षक मूर्ति के कारण प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालुओं यहां आ रहे हैं। इनमें अन्य प्रांतों और विदेश के श्रद्धालु भी शामिल हैं।
परमार कालीन है प्रतिमा
भगवान पशुपतिनाथ की यह बारह मुखी चमत्कारिक मूर्ति पुरातत्व महत्व की है। यह आग्नेय चट्टान बेसाल्ट पत्थर पर तराशी प्रतीत होती है। पुरातत्वविदों के मुताबिक यह ऐतिहासिक मूर्ति परमारकालीन है और और इसकी कीमत अनमोल है। भगवान के सभी अवतरण दिवसों पर होने वाले आयोजनों पर यहां आयोजन हुए, लेकिन कोरोना के कारण इस वर्ष सभी आयोजनों पर पाबंदी लग गई। ग्राम के शंकरसिंह जादव एवं दुबे ने बताया कि भगवान की इस आकर्षक मूर्ति को देखने के लिए जयपुर राजस्थान के अनेक मूर्तिकार आए और उन्होंने बताया कि हमने हजारों मूर्ति बनाई है, लेकिन इस प्रकार की मूर्ति नहीं बना सकते। इस मूर्ति का पत्थर ऐसा है कि हमारे औजार इस पर कोई कारीगिरी नहीं कर सकती। यह मूर्ति बेशकीमती है।
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