शाजापुर-आगर जिले में रहने वाले पालीवाल श्री आदिगौड़ ब्राह्मण समाजजन रक्षाबंधन पर्व नहीं मनाते। इस दिन उन्होंने अपने समाज के लोगों की आत्मशांति के लिए तर्पण कर पूजा अर्चना की। इस बार लॉकडाउन के कारण समाजजन राजस्थान के पाली नहीं जा सके। ऐसे में उन्होंने यहीं पूजा अर्चना कर पूर्वजों की आत्मशांति की कामना की।
विक्रम संवत 1348 में मुगलों से लड़ाई लड़ते हुए पालीवाल श्री आदिगौड़ ब्राह्मण समाज के बड़ी संख्या में लोग शहीद हो गए थे। करीब 10 दिन चले युद्ध के दौरान राजस्थान के पाली में जलालुद्दीन खिलजी ने आक्रमण कर पूरे गांव को तहस-नहस कर दिया। समाज के गिरिराज पालीवाल, ललित पालीवाल ने बताया कि रक्षाबंधन के दिन अंतिम संस्कार में मौत की गिनती ही नहीं हो सकी। पूर्वजों के बताए अनुसार शवों को जनेऊ पहनाने में ही 40 मन (करीब 800 किलो) वजन जनेऊ लगी थी। पालीवाल समाजजन की बस्ती में बने कुएं में ही कई महिलाओं ने जौहर कर लिया। महिलाओं को अंतिम संस्कार के दौरान पहनाए जाने वाले चूड़े 80 मन यानी करीब 1600 किलो वजन के लगे। लाखों लोगांे के शहीद होने के बाद से समाजजन ने रक्षाबंधन मनाना बंद कर दिया।
गिरिराज पालीवाल ने बताया कि देशभर के समाजजन रक्षाबंधन के दिन पाली पहुंचते हैं। जहां सामूहिक रूप से शहीद समाजजन की आत्मशांति के लिए सामूहिक तर्पण करते हैं। इस साल लॉकडाउन के दौरान ज्यादा लोग नहीं जा सके। लेकिन नहीं जाने वालों ने अपने घर पर ही शहीद हुए समाजजन के नाम से पूजा अर्चना की। समाज के अशोक कुमार पालीवाल ने बताया उस समय मुगलों ने हमारे समाज के एक-एक कर 84 खेड़े (गांव) उजाड़ दिए। हर जगह बसाहट के बाद स्थानीय राजा का सहयोग नहीं मिलने से समाजजन को गांव छोड़ना पड़ा। हालांकि जिन गांवों को समाजजन ने छोड़ा वे खेड़े आज भी शापित हैं। वहां दूसरे समाज के लोग भी नहीं रहते।
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