तीर्थनगरी के अधिकांश आश्रमों व मंदिरों में पूजन-पाठ व कीर्तन होते हैं लेकिन कुछ आश्रम ऐसे भी हैं जिनके संत पर्यावरण की रक्षा में अपनी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। सुबह से शाम तक इनकी एक ही पूजा होती है पेड़-पौधों की रक्षा करना। इनकी सिंचाई करना। दो-तीन संत ओंकार पर्वत को पुराना स्वरूप लौटाने में जुटे हैं। उन्होंने अपने आश्रमों में सैकड़ों पौधे लगाए जो अब पेड़ बन चुके हैं। उनका सुबह से शाम तक एक ही काम होता है पेड़ों की सिंचाई व साफ-सफाई। ऐसे ही एक संत हैं मस्त गिरी बाबा। उन्होंने एक एकड़ में करीब 200 पौधे लगाए जो अब पेड़ बन रहे हैं। इनमें 150 पेड़ फलदार हैं। तड़के 5 बजे से इनकी दिनचर्या पेड़ों की सिंचाई से शुरू होती है और शाम भी इसी काम में बीत जाती है। सिंचाई के लिए इन्होंने नर्मदा से कनेक्शन ले रखा है। मस्त गिरी महाराज ने बताया पेड़-पौधों और पक्षियों के कलरव के बीच कब दिन बीत जाता है पता ही नहीं चलता। पृथ्वी पर प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए मेरा एक छोटा सा प्रयास है।
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