एक ओर दूसरे राज्यों से बड़ी तादाद में मजदूर भिंड लाए जा रहे हैं। जबकि दूसरी ओर जिले में उन्हें प्रशासन रोजगार उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। ऐसे में इन परिवारों के सामने रोजीरोटी का संकट खड़ा हो गया है। स्थिति यह है कि जिले में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना) के तहत एक लाख 8 हजार 713 जॉब कार्डधारी मजदूर हैं, जिसमें से प्रशासन बमुश्किल 9773 मजदूरों को प्रतिदिन रोजगार उपलब्ध करा पा रहा है। लेकिन मजदूरी मात्र 190 रुपए प्रतिदिन होने की वजह से मजदूरों का इतने में गुजारा नहीं हो रहा है।
जिले से बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए गुजरात, दिल्ली जाते हैं। जहां वे कलकारखानों सहित अन्य प्रकार की मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालते हैं। कोरोना संक्रमण के चलते देशभर में हुए लॉकडाउन के बाद यह लोग वापस अपने घर लौटने लगे हैं। जिला प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक अब तक जिले में देश के विभिन्न शहरों से 54 हजार से अधिक लोग आ चुके हैं, जिसमें करीब 25 हजार मजदूर पेशा लोग हैं। ऐसे में अब इन लोगों के सामने परिवार का पालन पोषण करने के लिए रोजगार का बड़ा संकट पैदा हो गया है।
1. पानी पूड़ी का धंधा बंद हो गया, 40 दिन बड़ी मुश्किल से कटेः राजस्थान के जयपुर शहर में आलमपुर के मनोज पुत्र राजू रायकबार पानी पूड़ी का ठेला लगाते थे। मनोज ने बताया कि पहले दिन ही 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगा और धंधा बंद हो गया। उसके बाद 40 दिन बड़ी मुश्किल में गुजारे कई बार तो एक वक्त खाना खाकर सोना पड़ता था। मनोज ने बताया कि अब नहीं लगता कि 6 महीने तक हम पानी पूड़ी का ठेला लगा पाएंगे। यहां भी कोई मजदूरी नहीं है, जिससे परिवार के सामने भरण पोषण की समस्या पैदा हो जाएगी।
2. घर पहुंच जाएं फिर कभी सूरत नहीं आएंगेःअटेर क्षेत्र के दतावली निवासी मुकेश कुमार अहमदाबाद में पुताई का कार्य करते हैं। लॉकडाउन के दौरान उन्हें काम मिलना बंद हो गया। कुछ दिन तो जैसे तैसे उन्होंने वहां गुजारे फिर किसी तरह से अपने गांव लौट आए। लेकिन यहां भी उन्हें कोई रोजगार नहीं मिल रहा है। ऐसे परिवार का गुजारा करना मुश्किल हो रहा है। अब वे इस इंतजार में बैठे हैं कि किसी तरह से लॉकडाउन खुले तब वे पुनः अहमदाबाद पहुंचकर अपना पुराना काम शुरु कर सकें।
3. फसल बर्बाद होने पर बाहर गए, वहां भी मजदूरी छिन गई: होली से पहले ओलावृष्टि से पांच बीघा जमीन में खड़ी सरसों की फसल बर्बाद हो गई थी। बेटे की शादी सिर पर थी, इसलिए मजदूरी करने के लिए गांधीधाम चले गए। 10 दिन तक काम किया फिर लॉकडाउन लगा और रोजगार ठप हो गया। जो कुछ कमाया था वह 15 दिन में खत्म हो गया, उसके बाद समाजसेवियों की मदद से खाना खा लेते थे। जैसे तैसे घर पहुंचे हैं पर यहां भी रोजगार का कोई साधन नहीं मिल रहा है। ऐसे में परिवार का भरण पोषण करना मुश्किल हो रहा है।
420 पंचायतों में चुनिंदा मजदूरों को मिल रहा काम
जिले 447 पंचायतों में से 420 पंचायतों में मनरेगा के तहत तालाब निर्माण, सुदूर सड़क, कच्चे नाला आदि के निर्माण कार्य चल रहे हैं। लेकिन इसमें मजदूरी चुनिंदा (9773 लोगों) को ही मिल रही है। इस संबंध में जिला पंचायत के अफसरों का तर्क है कि शासन से गाइड लाइन है कि उन्हें कुल जॉब कार्डधारियों के 10 प्रतिशत लोगों को रोज रोजगार देना हैं। ऐसे में 98 हजार मजदूर के हाथ रोजगार की तलाश में खाली बैठे हैं। वहीं जिले में करीब एक हजार से ज्यादा निर्माण कार्य बंद होने के कारण रोजगार भी बंद हैं।
चल रहे दो बड़े प्रोजेक्ट में बंगाल के मजदूर कर रहे कार्य
शहर में इन दिनों सीवर और पानी के दो बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जिसमें करीब 150 श्रमिक पश्चिम बंगाल के कार्य कर रहे हैं। लेकिन स्थानीय मजदूरों को काम नहीं मिल रहा हैं। जबकि इस समय जिले में 25 हजार से ज्यादा मजदूर दूसरे शहरों से वापस अपने गांव आ चुके हैं। लेकिन उन हाथों को मजदूरी न मिलने से वे अपने परिवार का भरण पोषण नहीं कर पा रहे हैं। जबकि जिला प्रशासन बाहर से आए इन मजदूरों को मजदूरी नहीं दिला पा रहा हैं।
पंचायतों में एक हजार मजदूरों को रोजगार दिया
प्रमोद तोमर, परियोजना अधिकारी मनरेगा के मुताबिक, जिले की 420 पंचायतों में मनरेगा के तहत कार्य चल रहे हैं। बाहर से आए करीब एक हजार मजदूरों को भी रोजगार दिया गया है। शासन की जो गाइड लाइन है उस हिसाब से कार्य कराया जा रहा है।
हमारे प्रोजेक्ट में जो लेवर काम करती है वह टेक्नीकल होती है
-संजय शुक्ला, प्रोजेक्ट मैनेजर, सीवर के मुताबिक,हमारे प्रोजेक्ट में जो लेवर काम करती है वह एक तरह से टेक्नीकल लेवर होती है। जबकि लोकल की लेवर गहराई में उतरने अथवा ऊंचाई पर काम करने में डरती है। हालांकि साफ सफाई और मटेरियल उठाने के काम में हम थोड़ी बहुत लोकल की लेवर भी लेते हैं। अभी हमारे यहां 30 से 35 लोग लोकल के काम कर रहे हैं।
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