रिमझिम के बीच सावन के पहले साेमवार काे ओंकारेश्वर भगवान की सवारी निकली। परंपरागत मार्ग के बजाय संक्षिप्त यात्रा में सिर्फ दो ढोल थे। ज्योतिर्लिंग मंदिर संस्थान से शाम 4 बजे ओंकारजी की पालकी ने प्रस्थान किया। साेशल डिस्टेंस के पालन, आम भक्त और बगैर गुलाल के पहली बार पालकी निकली। कोटितीर्थ घाट पर पांच वैदिक विद्वान पंडित राजराजेश्वर दीक्षित, पं. रामचंद्र परशाई, पं. गोपालकृष्ण दुबे, पं.जगदीश परशाई, पं. सुरेश कौशिक की उपस्थिति में ओंकारजी भगवान के रजत मुखाैटे का पंचामृत से अभिषेक हुअा। इसके बाद ओंकारजी ने नौका विहार किया। शिवपुरी क्षेत्र होते हुए करीब डेढ़ घंटे में मंदिर पहुंचकर पालकी यात्रा का समापन हुआ।
अभिषेक स्थल के आसपास रस्सी बांध दी गई, दूर से किए दर्शन
पालकी निकलने के दौरान नर्मदा तट पर होने वाले अभिषेक स्थल के आसपास रस्सी बांध दी गई, साथ ही सीमित संख्या में वैदिक विद्वानों द्वारा ही ओंकारजी भगवान का अभिषेक किया गया। घाट पर मौजूद भक्तों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराकर दूर-दूर बैठाया गया। तट पर बैठे भक्तगण भोलेनाथ का स्मरण करते रहे। इस दौरान मंदिर संस्थान के मुख्य कार्यपालन अधिकारी व पुनासा एसडीएम डॉ. ममता खेड़े, थाना प्रभारी जगदीश पाटीदार सहित अन्य पुलिस बल मौजूद रहा। वहीं दूसरी ओर ममलेश्वर महादेव के मुखौटे का गोमुख घाट पर विद्वानों की उपस्थिति में अभिषेक किया गया। संक्षिप्त पूजन-अभिषेक के बाद ममलेश्वर भगवान की पालकी गोमुख घाट से सीधे ममलेश्वर मंदिर की ओर रवाना हुई। मंदिर संस्थान के सहायक मुख्य कार्यपालन अधिकारी अशोक महाजन ने बताया श्रावण के पहले सोमवार को ज्योतिर्लिंग महादेव का विशेष श्रृंगार किया गया था।
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